भारत के मध्य में कला, संस्कृति और साहित्य सम्वर्धन का अनूठा प्रयोग
बुन्देलखण्ड प्रागैतिहासिक काल से ही अद्भुत कलाओं, प्राचीन सभ्यताओं और संस्कृतियों का गढ़ रहा है। यहां की संस्कृति आध्यात्म भावना पर आश्रित है। यहाँ भौतिकवाद की अपेक्षा आध्यात्मवाद पर अधिक बल दिया गया है। सटीक शब्दों में कहा जाए तो भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद बुंदेलखंड में जो एकता और समरसता है, उसके कारण यह क्षेत्र अपने आप में सबसे अनूठा बन पड़ता है। बुंदेलखंड की अपनी अलग ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत है। बुंदेली माटी में जन्मी अनेक विभूतियों ने न केवल अपना बल्कि इस अंचल का नाम खूब रोशन किया और इतिहास में अमर हो गए।
बुंदेलखंड के अनन्त वैभव की झलक हमें आज उक्त भूमि पर संजोई हुई अमरगाथाओं से प्राप्त होती है। इस भूमि पर इस कला ने असीमित आदर पाया और उसका भरपूर विकास हुआ। जहां बुन्देलखण्ड का “इत जमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टोंस” से परिचय दिया जाता है, वहीं भौगोलिक दृष्टि जनजीवन, संस्कृति और भाषा के सन्दर्भ को बुन्देला क्षत्रियों के वैभवकाल से जोड़ा जाता है। बुन्देली इस भू-भाग की सबसे अधिक व्यवहार में आने वाली बोली है। विगत 700 वर्षों से इसमें पर्याप्त साहित्य सृजन हुआ। बुन्देली काव्य में विभिन्न साधनाओं, जातियों और आदि का परिचय भी मिलता है।
बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव महज एक कार्यक्रम नहीं बल्कि एक महोत्सव है जहां साहित्यिक सृजन से लेकर बुन्देली साहित्य के भविष्य तक, कलाओं के उद्गम से लेकर उनकी पराकाष्ठाओं तक एवं संस्कृतियों की अनूठी मिसालों का अनूठा संगम देखने को मिलता है। एक ऐसा उत्सव जहां विद्वान साहित्यकारों से लेकर आज वर्तमान व आने वाली युवा पीढ़ी के साहित्यकारों तक सभी एक साथ बुन्देलखण्ड की इस पावन धरा की गरिमा को ऐसे ही अमूल्य बनाये रखने की भरसक कोशिश करते हैं। केवल इतना ही नहीं अन्य विचारधाराओं के प्रति सहिष्णुता बुन्देली संस्कृति की विशेषता रही है एवं पूर्ण रूप से ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ओत-प्रोत है। यूं तो बुंदेलखंड झांसी की रानी के शौर्य के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है लेकिन यहां का साहित्य उन मामूली स्त्रियों की दास्तान भी दर्ज करता है जो मेहनत और लगन में अपनी बहादुरी की कहानी कहती है।
बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव के उद्देश्य
देखा जाये तो किसी भी स्थान की संस्कृति उस स्थान के धर्म, दर्शन, साहित्य, कला तथा राजनीतिक विचारों पर आधारित रहती है। इसी तरह बुन्देलखण्ड की संस्कृति भी अनेक तत्वों के मिश्रण से बनी है। गौरतलब है कि समय के साथ बदलते हुए दौर में आधुनिकतावाद के पीछे भागते हुए विश्व की अनेक प्राचीन संस्कृतियां नष्ट हो गईं, परन्तु भारतीय संस्कृति की यह धारा आज भी प्रवाहित है।
जिस प्रकार साहित्य, संस्कृति और कला-प्रेमियों ने गहन अनुसंधान कर इस मूल्यवान धरोहर को संजोया है, उसी प्रकार बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव का गठन भी बुन्देलखण्ड प्रान्त के अमूल्य साहित्य और यहां की अद्भुत कलाओं और संस्कृति को सहेजने एवं उसे और व्यापक बनाने के लिये किया गया है। वर्ष 2020 में बुंदेलखंड साहित्य महोत्सव की नींव रखी गई थी।
बुन्देलखण्ड की संस्कृति और साहित्यिक परंपराएं प्राचीन काल से ही समृद्ध एवं विशिष्ट रही हैं जिसे बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव के युवाओं की अपार कार्यक्षमता, एवं विद्वान अग्रजों की छत्रछाया ने संजोये रखने की कोशिश की है। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम का उद्देश्य बुंदेलखंड के साहित्य, संस्कृति, कला को देश भर में पहुंचाना था।
बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव महज एक कार्यक्रम नहीं बल्कि एक महोत्सव है जहां साहित्यिक सृजन से लेकर बुन्देली साहित्य के भविष्य तक, कलाओं के उद्गम से लेकर उनकी पराकाष्ठाओं तक एवं संस्कृतियों की अनूठी मिसालों का अनूठा संगम देखने को मिलता है। एक ऐसा उत्सव जहां विद्वान साहित्यकारों से लेकर आज वर्तमान व आने वाली युवा पीढ़ी के साहित्यकारों तक सभी एक साथ बुन्देलखण्ड की इस पावन धरा की गरिमा को ऐसे ही अमूल्य बनाये रखने की भरसक कोशिश करते हैं। केवल इतना ही नहीं अन्य विचारधाराओं के प्रति सहिष्णुता बुन्देली संस्कृति की विशेषता रही है एवं पूर्ण रूप से ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ओत-प्रोत है। यूं तो बुंदेलखंड झांसी की रानी के शौर्य के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है लेकिन यहां का साहित्य उन मामूली स्त्रियों की दास्तान भी दर्ज करता है जो मेहनत और लगन में अपनी बहादुरी की कहानी कहती है।
बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव की कार्यशैलियों पर बात करें तो यहां एक ही छत के नीचे विविधताओं में एकता देखने को मिलती है। जहां केवल बुन्देलखण्ड ही नहीं अपितु समस्त भारत के साहित्यकारों और कलाप्रेमियों को खुले हृदय से स्वागत किया जाता है एवं समस्त राष्ट्र के मौलिक एवं अनुसंधानिक परिप्रेक्ष्यों पर परिचर्चाएं की जाती हैं जैसे कि साहित्य जगत, कला जगत, सिनेमा से लेकर जमीनी सभ्यताएं कहीं से भी इससे अछूती नहीं हैं। यही वजह है कि प्राचीन सभ्यताओं एवं परम्पराओं से लेकर आधुनिक तकनीकों का साहित्य एवं कला में योगदान देख सकते हैं इसी तरह युवा पीढ़ी से लेकर वरिष्ठ साहित्य एवं कला के कद्रदानों द्वारा मिलकर इस संस्कृति को संजोये रखने की अनूठी मिसालें देख सकते हैं।